Sunday, September 13, 2009

आतंकवाद

इतना कला स्याय धुआं कीस्ने उड़ाया है ?
बाबा बता न, मेरा नन्हा सा बसेरा कीस्ने जलाया है?
मेरा साथी भी पता नहीं कीधर खो गया है,
बाबा बता न मेरा भईया भी चुप चाप क्यों सो गया है?
बेटी, नहीं बोलेगा आज वोह अपनी बोली,
कैसे बताऊ तुझे की उसे लगी है आतंकवाद की गोली |
रोज़ तेरे कीतने ही साथी इस तरह खो जाते है,
बेटी, रोज़ तेरे कीतने ही भाई इस तरह सो जाते है |
कीतनी ही बहनों की राखियाँ इस तरह रोती है,
कितनी ही सुहागनों की मांगे रोज़ सुनी हो जाती है |
क्यों नहीं आता जरा भी कीसी को ख्याल,
रोज़ सो जाते है कीतनी ही माओं के लाल |
ए भारत की धरती ! कीतने ही शहीदों ने,
तुझे अपना खून पीला कर आज़ाद करवाया था |
आज तुने यह अपना कैसा रूप दीखाया है?
उसी समय तू कह देती मैं और प्यासी हूँ |
तुझे अपना लहू हम और पीला देते,
जहा इतने शहीद हुए थे वह कुछ और हो जाते |
क्या यह भारत की कल की तस्वीर है?
क्या यह आने वाले कल की तकदीर है?
आओ जागे, हम एक कर दे एडी और चोटी,
थाम ले बापू की लाठी और पहन ले फीर से लंगोटी |
जीसे पहनकर बापू ने अंग्रेजो को भगाया था,
जीस लाठी के  जोर से भारत को आज़ाद करवाया था | |

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